कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में मायावती का बड़ा कार्यक्रम में BSP अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में. क्या इससे SP और BJP की टेंशन बढ़ेगी जानिए पूरी कहानी
लखनऊ की सियासत
लखनऊ की सियासत में 9 अक्टूबर को इस बार कुछ खास बनने वाला है और वजह है बसपा संस्थापक कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस और इसी दिन BSP प्रमुख मायावती लंबे वक्त बाद लखनऊ में बड़ा आयोजन करने जा रही हैं और जगह चुनी गई है कांशीराम स्मारक पार्क व जिसकी क्षमता करीब 1 लाख लोगों की है और मायावती इस आयोजन को सिर्फ श्रद्धांजलि कार्यक्रम के तौर पर ही नहीं बल्कि एक political test की तरह इस्तेमाल करती दिख रही हैं और सवाल बडा उठ रहा है कि क्या इस कार्यक्रम से SP और BJP की टेंशन बढ़ेगी.
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BSP के लिए क्यों अहम है यह आयोजन
बहुजन समाज पार्टी की पहचान हमेशा उसकी बड़ी रैलियों और जनसभाओं से जुड़ी रही है और 1984 में गठन के बाद से BSP ने अपने कैडर की ताकत मैदान में दिखाई है और यही वजह रही कि जमीनी नेता राष्ट्रीय राजनीति तक पहुंचे हैं पर मगर पिछले एक दशक में पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे गया है और 2012 के बाद से लगातार विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हार वोट प्रतिशत का गिरना और नेताओं का टूटना इन सबने BSP को बहुत कमजोर बना दिया है और आज हालत यह है कि लोकसभा में शून्य और विधानसभा में केवल एक सीट पर सिमट गई है.
बहन मायावती जी की नई चाल
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बहन मायावती जी इस आयोजन से अपने core voters यानी दलित समाज जिसमें खासकर जाटव वर्ग व को मैसेज देना चाहती हैं और यही वोटबैंक BSP की रीढ़ रहा है और लखनऊ का कांशीराम स्मारक पार्क चुनकर मायावती ने एक टेस्ट रखा है और अगर यह मैदान भरता है तो मायावती को 2027 चुनाव से पहले हौसला मिलेगा और वह बड़े स्तर पर रैली का ऐलान कर सकती हैं.
क्यों नहीं चुना रमाबाई मैदान
कई लोगों ने सवाल उठाया कि बहन मायावती जी ने अपनी पारंपरिक जगह रमाबाई अंबेडकर मैदान को क्यों छोड़ा तो जवाब सीधा है की वह मैदान सरकार में रहते भरना आसान था और क्योंकि उस वक्त मंत्री, विधायक और सांसद सब जुट जाते थे पर अब हालात बदल चुके हैं और आज BSP के पास न बड़े नेता बचे हैं और न ही मजबूत संगठन तो ऐसे में कांशीराम स्मारक पार्क का चयन ज्यादा practical लग रहा है.
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BSP का लगातार गिरता ग्राफ
अगर पिछले 10 साल देखें तो BSP का ग्राफ लगातार नीचे गया है और 2012 में सत्ता गंवाने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में BSP को करारी हार मिली और 2017 में भी पार्टी सत्ता से दूर रही और 2019 में SP से गठबंधन कर थोड़ी राहत जरूर मिली और 10 सांसद जीतकर आए पर 2022 विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली और वोट प्रतिशत 12% तक गिर गया और 2024 लोकसभा चुनाव में एक भी सांसद नहीं जीत पाया और यानी BSP वहीं लौट आई जहां से कभी शुरुआत की थी.
समर्थकों को जोड़ने की कोशिश
बहन मायावती जी चाहती हैं कि उनके core voters को यह विश्वास मिले कि BSP अब भी relevant है और यही वजह है कि कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस को शक्ति प्रदर्शन का मंच बनाया गया है और BSP नेताओं का दावा है कि यहां लाखों लोग सिर्फ श्रद्धांजलि देने आएंगे और मायावती उन्हें संबोधित करेंगी और अभी तक नाम रैली का नहीं रखा गया है पर राजनीति में हर कदम का मैसेज होता है और यह मैसेज साफ है BSP अब भी मैदान में मौजूद है.
SP और BJP क्यों चिंतित
इस कार्यक्रम की चर्चा सिर्फ BSP तक ही सीमित नहीं है पर समाजवादी पार्टी और बीजेपी भी इस पर नजर बनाए हुए हैं और SP को डर है कि BSP अगर थोड़ी भी मजबूत होती है तो उसका सीधा नुकसान उसे होगा क्योंकि उसका बड़ा वोट बैंक ओवरलैप करता है तो वहीं BJP को चिंता इसलिए है क्योंकि ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद जैसे उसके सहयोगी हाल ही में मायावती और आकाश आनंद की तारीफ कर चुके हैं इससे BJP का equation बिगड़ सकता है.
विपक्षी रणनीति पर असर
SP और BJP के अलावा छोटे दल भी इस आयोजन को ध्यान से देख रहे हैं और अगर मैदान भर गया तो मायावती को एक moral boost मिलेगा और इससे विपक्ष की रणनीति बदल सकती है पर SP और कांग्रेस को फिर से सोचना पड़ेगा कि क्या उन्हें BSP के साथ तालमेल करना चाहिए या उससे दूरी.
बहन मायावती जी का इमेज मैनेजमेंट
यह आयोजन बहन मायावती जी के लिए सिर्फ राजनीति नहीं है बल्कि image management भी है और पिछले चुनावों की हार ने कार्यकर्ताओं का विश्वास हिला दिया था और अब अगर लाखों लोग जुटते हैं तो यह मैसेज जाएगा कि BSP की जमीन पर अब भी पकड़ है और यही संदेश बहन मायावती जी 2027 के लिए देना चाहती हैं.
कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस
कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस इस बार सिर्फ एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम नहीं है बल्कि बहन मायावती जी की सियासी रणनीति का हिस्सा है और इसमें BSP अपनी ताकत मापेगी और विरोधियों की धड़कनें तेज होंगी और अगर यह आयोजन सफल हुआ तो आने वाले चुनावी समीकरणों में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा यानी की 9 अक्टूबर को लखनऊ की सियासत की दिशा काफी हद तक तय हो सकती है.