China’s Influence Through Loans: Bangladesh Receives Relief in Loan Terms
चीन अब बांग्लादेश का चौथा सबसे बड़ा ऋणदाता बन चुका है, जो जापान, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के बाद आता है। 1975 से लेकर अब तक चीन ने बांग्लादेश को कुल 7.5 अरब डॉलर का ऋण दिया है। पिछले एक साल में भारत के पड़ोसी देशों में कई राजनीतिक बदलाव हुए हैं, और चीन इन बदलावों का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है। मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच चीन अपनी ऋण नीति के जरिए इन देशों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
China has become the fourth-largest lender to Bangladesh, after Japan, the World Bank, and the Asian Development Bank, providing a total of $7.5 billion in loans since 1975. In the past year, several political changes have taken place in India’s neighboring countries, and China has been actively trying to capitalize on these shifts. Countries like the Maldives, Sri Lanka, and Bangladesh have experienced political turmoil, and China has been using its loan policy to strengthen its foothold in these nations.
चीन की ऋण नीति: पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश
China’s Loan Policy: After Pakistan, Now Bangladesh
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पाकिस्तान को अपने ऋण जाल में फंसाने के बाद, चीन अब बांग्लादेश पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। बांग्लादेश के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन इस समय चीन दौरे पर हैं, जहां उनका मुख्य मुद्दा बांग्लादेश द्वारा लिए गए ऋण की भुगतान अवधि को बढ़ाने का है। इस पर चीन ने सहमति दी है और बांग्लादेश को यह आश्वासन भी दिया है कि वह ब्याज दरों को घटाने के प्रस्ताव पर विचार करेगा, जिससे बांग्लादेश पर विदेशी ऋण का दबाव कम किया जा सके।
After securing Pakistan in its debt trap, China is now focusing on Bangladesh. Bangladesh’s foreign adviser, Tawhid Hussain, is currently on a visit to China, where the key issue is to extend the loan repayment period. China has agreed to this and also assured Bangladesh that it would consider reducing the interest rates to ease the foreign debt burden.
बांग्लादेश की मांग: ब्याज दर में कमी और ऋण अवधि में वृद्धि
Bangladesh’s Request: Lower Interest Rates and Extended Loan Tenure
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तौहीद हुसैन ने चीन से यह अनुरोध किया कि ब्याज दर को 2-3 प्रतिशत से घटाकर 1 प्रतिशत किया जाए और ऋण की अवधि को 20 साल से बढ़ाकर 30 साल किया जाए। चीन ने इन दोनों मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। यह कदम बांग्लादेश के लिए वित्तीय राहत का कारण बन सकता है, लेकिन साथ ही चीन की पकड़ भी मजबूत हो रही है।
Tawhid Hussain has requested China to reduce the interest rate from 2-3% to 1%, and to extend the loan repayment period from 20 to 30 years. China has responded positively to both demands. This move could provide financial relief to Bangladesh but also strengthen China’s influence over the country.
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चीन की ऋण नीति: श्रीलंका के बाद अब बांग्लादेश
China’s Debt Trap Strategy: After Sri Lanka, Now Bangladesh
चीन का छोटे देशों को ऋण देने का तरीका नया नहीं है। श्रीलंका को भी चीन ने भारी ऋण दिया था, जिसके परिणामस्वरूप श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को सौंप दिया था। अब, बांग्लादेश को ऋण देने के बाद, चीन इसी रणनीति को अपनाने की तैयारी में है। श्रीलंका में चीन की नौसैनिक निगरानी और जासूसी जहाजों की उपस्थिति भारत के लिए एक बड़ा खतरा है। यदि चीन ने बांग्लादेश में भी यही रणनीति अपनाई, तो यह भारत के रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकता है।
Lending to smaller nations is not new for China. China had extended substantial loans to Sri Lanka, which eventually led to the handover of the Hambantota port to China. Now, after providing loans to Bangladesh, China could be following a similar strategy. The Chinese presence in Sri Lanka, especially with naval surveillance and spy ships, poses a significant concern for India. If China continues its loan strategy in Bangladesh, it could further impact India’s strategic interests in the region.
निष्कर्ष:
Conclusion:
चीन अपनी ऋण नीति के माध्यम से भारत के पड़ोसी देशों में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। बांग्लादेश के मामले में, ऋण भुगतान की शर्तों में राहत देने से बांग्लादेश को वित्तीय राहत मिल सकती है, लेकिन यह चीन की बढ़ती प्रभावशीलता का संकेत भी है, जिसे भारत को सतर्कता से देखना होगा।
Through its loan policy, China is steadily strengthening its influence over neighboring countries of India. In the case of Bangladesh, the relaxation in loan repayment terms may provide financial relief, but it also marks an increase in China’s growing presence, which India must watch carefully.
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