रेत से निकला रहस्य: दुधवा में पहली बार कैमरे में कैद हुआ ‘कॉनडानारस सैंड स्नेक’!
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लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश:
उत्तर प्रदेश के दुधवा टाइगर रिज़र्व (DTR) ने हाल ही में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। राज्य में पहली बार ‘कॉनडानारस सैंड स्नेक’ (Psammophis condanarus) की फोटोग्राफिक दस्तावेजीकरण किया गया है। यह खोज न केवल राज्य की जैव विविधता में एक महत्वपूर्ण जुड़ाव है, बल्कि यह दर्शाता है कि उत्तर भारत में अब भी प्रकृति के ऐसे कई रहस्य छुपे हैं जिन्हें अभी उजागर किया जाना बाकी है।
📸 कैसे हुई यह दुर्लभ खोज?
यह उपलब्धि तब मिली जब वन विभाग और WWF इंडिया की एक संयुक्त टीम जंगल की नियमित निगरानी पर थी। यह टीम दुधवा के फ्री-रेंजिंग राइनो क्षेत्र के पास एक घास के मैदान से गुज़र रही थी, तभी उन्हें एक मृत सरीसृप दिखाई दिया। टीम के जीवविज्ञानी अपूर्व गुप्ता, जूनियर असिस्टेंट सुशांत सिंह और WWF इंडिया के प्रतिनिधि रोहित रवि ने इस सर्प के विशिष्ट रंग और शारीरिक बनावट को देखते हुए कई कोणों से इसकी उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें खींचीं।
इन तस्वीरों को प्रसिद्ध हर्पेटोलॉजिस्ट विपिन कपूर सैनी को भेजा गया जिन्होंने इसकी पहचान Psammophis condanarus के रूप में की।
🐍 कौन है यह सैंड स्नेक?
- वैज्ञानिक नाम: Psammophis condanarus
- प्रकार: हल्का विषैला (mildly venomous), तेज़ गति से चलने वाला
- परिवार: Colubridae
- मुख्य क्षेत्र: भारत के शुष्क इलाके, नेपाल, पाकिस्तान
- आहार: छोटे सरीसृप, कृंतक
- गतिविधि: दिन में सक्रिय (diurnal)
इस प्रजाति का उल्लेख पहले कभी उत्तर प्रदेश में नहीं हुआ था, और यह पहली बार है जब इसे यहां फोटोग्राफिक रूप से दर्ज किया गया है।
🧪 मौत का कारण?
हालांकि सांप मृत अवस्था में मिला, परंतु सैनी के अनुसार संभावना है कि यह किसी शिकारी पक्षी (raptor) द्वारा मारा गया हो। परंतु कोई प्रत्यक्ष प्रमाण इसकी पुष्टि नहीं करता।
🧬 यूपी में चौथी नई सरीसृप प्रजाति की पुष्टि
दुधवा टाइगर रिज़र्व के उप निदेशक रेन्गराजु टी ने कहा,
“यह खोज दुधवा की अद्वितीय जैव विविधता को दर्शाती है। एक ऐसी प्रजाति की उपस्थिति जो इस क्षेत्र में अब तक अज्ञात थी, हमारी संरक्षण रणनीतियों को और बल देती है।”
फील्ड डायरेक्टर एच. राजमोहन ने जोड़ा,
“पिछले दो वर्षों में यह चौथी सरीसृप प्रजाति है जिसे पहली बार उत्तर प्रदेश में दर्ज किया गया है। यह स्पष्ट करता है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों की और गहराई से जांच करनी चाहिए।”
🌱 यह खोज क्यों है महत्वपूर्ण?
- जैव विविधता का संकेतक:
यह दर्शाता है कि दुधवा क्षेत्र सिर्फ बाघों और गैंडों का घर नहीं है, बल्कि कम प्रसिद्ध और कम अध्ययन किए गए जीवों का भी आश्रय है। - विज्ञान के लिए योगदान:
ऐसी खोजें शोधकर्ताओं को नई दिशा देती हैं कि कौन-सी प्रजातियां किस क्षेत्र में मौजूद हैं, और उनका पारिस्थितिक संतुलन में क्या योगदान है। - संरक्षण के लिए मार्गदर्शक:
नई प्रजातियों की खोज यह संकेत देती है कि कई क्षेत्र अभी संरक्षण के दृष्टिकोण से अनदेखे हैं।
🔍 WWF और वन विभाग का सराहनीय योगदान
इस सफल खोज के पीछे WWF इंडिया और उत्तर प्रदेश वन विभाग की संयुक्त निगरानी प्रणाली और वास्तविक समय डेटा रिकॉर्डिंग जैसे उपायों का बड़ा योगदान है।
‘कॉनडानारस सैंड स्नेक’ की यह दस्तावेजी खोज केवल एक प्रजाति की पुष्टि नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के उन अनदेखे पहलुओं की झलक भी है जो आज भी हमारे आसपास मौजूद हैं। यह घटना न केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिए उत्साहजनक है बल्कि राज्य में जैव विविधता के प्रति जागरूकता और संरक्षण प्रयासों को भी नया आयाम देती है।
अब सवाल यह है — आगे कौन-सी रहस्यमयी प्रजाति कैमरे की नज़रों में आएगी?
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