✈️ “₹40,000 का टिकट? सिस्टम की गलती नहीं, मांग का असर!”
इंडिगो के सीईओ पिएटर एल्बर्स (Pieter Elbers) का मानना है कि भारत जैसे विशाल और तेजी से विकसित होते विमानन बाजार में टिकट की कीमतों को केवल भावनाओं या व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर तय नहीं किया जा सकता।
ALSO READ – UP बोर्ड का इंतजार: नतीजों पर सस्पेंस बरकरार!”

उन्होंने कहा,
“अगर एक टिकट ₹40,000 का दिखता है, तो जरूरी नहीं कि पूरी इंडस्ट्री मुनाफाखोरी कर रही हो। ये मूल्य निर्धारण एल्गोरिदम पर आधारित है जो मांग और उपलब्धता के अनुसार काम करता है।”
🔍 Air Sewa Cell की स्थापना पर प्रतिक्रिया
हाल ही में केंद्र सरकार ने यात्रियों की शिकायतों को सुलझाने के लिए ‘एयर सेवा सेल’ बनाने की घोषणा की। इस पर एल्बर्स ने कहा,
“ऐसी पहलें जरूरी हैं ताकि यात्रियों की आवाज़ सुनी जा सके। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत का विमानन उद्योग पहले ही दुनिया के सबसे प्रतिस्पर्धी बाजारों में है।”
📉 महंगाई बनाम हवाई किराया
एल्बर्स का दावा है कि बीते कुछ वर्षों में टिकट के दाम जितने बढ़े हैं, वह महंगाई दर के मुकाबले काफी कम हैं।
“जब हर चीज़ महंगी हो रही है – ईंधन, स्टाफ, एयरपोर्ट फीस – तो टिकट के दाम स्थिर कैसे रह सकते हैं? अगर कीमतें लागत से नीचे चली जाएं, तो एयरलाइन टिक नहीं पाएगी।”
🛑 डीजीसीए को किराया तय करने की मांग पर क्या बोले एल्बर्स?
मार्च में संसद की एक समिति ने DGCA को अस्थायी रूप से किराया तय करने की सिफारिश की थी, खासतौर पर त्योहारों और यात्राओं के पीक सीज़न में। इसपर इंडिगो CEO ने कहा:
“क्या हम भारतीय विमानन क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना चाहते हैं? अगर हां, तो हमें वैश्विक मॉडल और व्यवसायिक वास्तविकताओं को समझना होगा। होटल इंडस्ट्री में भी डिमांड बेस्ड प्राइसिंग होती है – वही एयरलाइंस में भी लागू है।”
🧳 महाकुंभ में बढ़े किरायों पर क्या बोले?
महाकुंभ के दौरान कुछ यात्रियों ने सोशल मीडिया पर टिकटों के आसमान छूते दामों को लेकर तीखी नाराज़गी जाहिर की। इंडिगो CEO ने इसे सिस्टम की ‘शोषण नीति’ नहीं, बल्कि डिमांड-सप्लाई लॉजिक बताया।
“अक्सर सिस्टम में टिकट बुकिंग समय के साथ ऊपर जाती है – जो पहले बुक करता है, उसे सस्ता मिलता है। अगर अंत में बचा एक टिकट ₹40,000 का बिकता है, तो ये नॉर्मल डिमांड स्पाइक है।”
📈 एयरलाइन की लागत में क्या-क्या शामिल होता है?
इंडिगो जैसे लो-कॉस्ट कैरियर्स को भी कई महंगे खर्चों से जूझना पड़ता है:
- एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) – जो कुल लागत का 30-40% होता है
- एयरपोर्ट हैंडलिंग चार्ज
- कर्मचारियों की तनख्वाह
- विमान किराया व मेंटेनेंस
- टैक्स और नियामकीय शुल्क
इन सभी कारकों को ध्यान में रखकर ही टिकट का मूल्य तय किया जाता है।
🌍 भारत को चाहिए ‘वैश्विक एविएशन ब्रांड्स’
एल्बर्स ने भारत को ग्लोबल एविएशन पावरहाउस बनाने की बात दोहराई। उनका कहना है कि अगर भारत को वर्ल्ड-क्लास एयरलाइंस चाहिए, तो प्राइसिंग सिस्टम को सपोर्ट करना होगा।
“हम बड़े सपने देखते हैं – एयर इंडिया और इंडिगो जैसे ब्रांड्स को वर्ल्ड लीडर बनाना। तो हमें बिजनेस की सच्चाइयों के साथ चलना होगा।”
2 thoughts on “किराया कड़वा सही, लेकिन वजह भी सुनिए – इंडिगो CEO”