Hospital और बीमा कंपनियों की जंग Common इंपैनलमेंट को पर मचा बवाल

By Shiv

Published on:

Hospital और बीमा कंपनियों की जंग

कॉमन इंपैनलमेंट क्या है और क्यों अस्पताल और बीमा कंपनियों के बीच टकराव बढ़ रहा है और इसका असर लाखों मरीजों पर कैसे पड़ेगा. जानिए पूरी जानकारी 2025.

अस्पताल और बीमा कंपनियों में जंग क्यों छिड़ी

देशभर में हेल्थकेयर सेक्टर में इन दिनों हलचल मची हुई है और बड़ी प्राइवेट हॉस्पिटल चेन्स और हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के बीच सीधे-सीधे टकराव देखने को मिल रहा है और वजह है कॉमन इंपैनलमेंट का नया प्रस्ताव और पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स की टैरिफ रेट्स पर सहमति न बन पाना और मैक्स हेल्थकेयर और मेदांता जैसे बड़े अस्पतालों ने साफ कर दिया है कि वे बजाज एलायंज पॉलिसीधारकों को सितंबर से कैशलेस इलाज नहीं देंगे जिसका इसका सीधा असर लाखों बीमा धारकों पर पड़ेगा जिन्हें अपना बिल खुद चुकाना होगा और बाद में reimbursement लेना पड़ेगा.

यह भी पढें – खुजली क्या होती है और कैसे फैलती है? पूरी जानकारी 2025

कॉमन इंपैनलमेंट क्या है

कॉमन इंपैनलमेंट दरअसल एक साझा पैनल होता है जिसे बीमा नियामक इरडा ने प्रस्तावित किया है और इसका मकसद है कैशलेस इलाज की प्रक्रिया को आसान बनाना और सभी बीमाधारकों को ज्यादा अस्पतालों में समान सुविधा देना और यानी एक unified platform होगा जिसमें सभी बीमा कंपनियां और अस्पताल जुड़े होंगे. इससे patient को ये फायदा होगा कि चाहे वो किसी भी कंपनी का बीमा क्यों न ले, उसे ज्यादा hospitals में बिना advance payment इलाज मिल सकेगा.

कॉमन इंपैनलमेंट के फायदे

इस सिस्टम से मरीजों के लिए इलाज आसान हो जाएगा क्योंकि उन्हें हर बार अलग-अलग insurance company के panel hospitals की लिस्ट देखने की जरूरत नहीं होगी.

  • अधिक hospitals में cashless treatment की सुविधा मिलेगी.
  • Insurance company बदलने पर भी मरीज को benefit मिलेगा.
  • Shared database से patient आसानी से check कर सकेगा कि कौन सा hospital उसकी policy में cover है.
  • Common authorization process होने से claim rejection के cases घटेंगे.
  • Empanelled hospitals के लिए quality standards तय होंगे.

फिर क्यों मचा है विवाद

अस्पतालों का कहना है कि कॉमन इंपैनलमेंट का ड्राफ्ट बिना उनकी राय लिए तैयार किया गया है और Package rates और payment rules hospitals के हिसाब से अव्यावहारिक हैं और ज़्यादातर शर्तें insurance companies के पक्ष में हैं और Hospitals का आरोप है कि medical inflation हर साल 78% तक बढ़ रही है और इलाज की दरें सालों से अपडेट नहीं हुईं औरअगर यही हाल रहा तो quality healthcare देना मुश्किल हो जाएगा और कई hospitals ने यह भी शिकायत की है कि जब वे bills भेजते हैं तो insurance companies बिना discussion के amount काट देती हैं.

यह भी पढें – बारिश आते ही बढ़ता है मलेरिया का खतरा से बचना सबसे जरूरी ऐसे करें बचाव 2025

छोटे और बड़े अस्पतालों की अलग राय

छोटे hospitals को कॉमन इंपैनलमेंट में फायदा दिख रहा है क्योंकि इससे उनकी reach बढ़ जाएगी और ज्यादा patients उनके पास आएंगे पर बड़े private hospital chains इसके खिलाफ खड़े हैं क्योंकि उनकी operational cost ज्यादा होती है और उन्हें standardised pricing और delayed reimbursement से दिक्कत है और उनका कहना है कि claim rejection और payment में delay quality healthcare पर असर डाल रहा है.

मरीजों पर सीधा असर

सबसे बड़ा नुकसान मरीजों को हो रहा है और सितंबर से अगर समझौता नहीं हुआ तो लाखों policyholders को कैशलेस सुविधा नहीं मिलेगी और ऐसे में उन्हें पहले अपना इलाज का खर्च खुद चुकाना होगा और बाद में insurance claim करना पड़ेगा पर Reimbursement process लंबा और मुश्किल होता है जिससे आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ेगा.

इलाज बंद नहीं होगा

अस्पतालों ने साफ किया है कि इलाज बंद नहीं होगा वस सिर्फ cashless सुविधा पर रोक लगेगी और Care Health Insurance को भी इसी तरह का notice दिया गया है और अगर 31 अगस्त तक विवाद नहीं सुलझा तो उनके customers पर भी असर पड़ेगा और Experts मानते हैं कि अगर कॉमन इंपैनलमेंट को सभी पक्षों की सहमति से लागू किया जाए तो यह healthcare sector के लिए game-changer साबित हो सकता है पर अगर असहमति बनी रही तो इसका खामियाजा सबसे ज्यादा मरीजों को उठाना पड़ेगा.

Leave a Comment