Govardhan Parikrama marg पूंछरी का लौठा: जहां बिना हाजिरी गोवर्धन परिक्रमा अधूरी मानी जाती है

By Shiv

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Govardhan Parikrama marg

Govardhan Parikrama marg पूंछरी का लौठा गोवर्धन परिक्रमा का सबसे रहस्यमयी स्थल है जहां बिना हाजिरी लगाए यात्रा अधूरी मानी जाती है। जानिए पूंछरी का लौठा का इतिहास, कथा और धार्मिक महत्व।

गोवर्धन परिक्रमा और आस्था का गहरा रिश्ता

Govardhan Parikrama marg गोवर्धन परिक्रमा का नाम सुनते ही मन में भक्ति, श्रद्धा और विश्वास की भावना जाग जाती है। मथुरा जिले का गोवर्धन क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है। यहां हर दिन हजारों श्रद्धालु 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करते हैं। कुछ लोग नंगे पांव चलते हैं तो कुछ श्रद्धा के साथ दंडवत परिक्रमा करते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि गोवर्धन परिक्रमा में एक ऐसा स्थान भी आता है, जहां बिना हाजिरी लगाए परिक्रमा पूरी नहीं मानी जाती। इस स्थान का नाम है पूंछरी का लौठा।

पूंछरी का लौठा कहां स्थित है

Govardhan Parikrama marg पूंछरी का लौठा गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में राजस्थान की सीमा में पड़ता है। यह स्थान गोवर्धन कस्बे से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरी परिक्रमा करीब 21 किलोमीटर की होती है, जिसमें लगभग 19 किलोमीटर उत्तर प्रदेश और शेष हिस्सा राजस्थान में आता है। यही वह जगह है जहां भक्त रुकते हैं, मन शांत करते हैं और अपनी हाजिरी लगाते हैं।

क्यों जरूरी मानी जाती है पूंछरी का लौठा पर हाजिरी

Govardhan Parikrama marg मान्यता है कि जब तक श्रद्धालु पूंछरी का लौठा पहुंचकर अपनी हाजिरी नहीं लगाता, तब तक उसकी गोवर्धन परिक्रमा अधूरी मानी जाती है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां आकर बिना रुके लौट जाना शुभ नहीं माना जाता। कई भक्त मानते हैं कि यहां पहुंचते ही मन अपने आप शांत हो जाता है और अंदर से एक अलग ऊर्जा महसूस होती है।

पूंछरी का लौठा से जुड़ी पौराणिक कथा

Govardhan Parikrama marg पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण अपनी लीलाएं पूर्ण कर बैकुंठ धाम जाने लगे, तब उन्होंने अपने सखा मधुमंगल को गोवर्धन पर्वत की सेवा का दायित्व सौंपा। भगवान कृष्ण ने मधुमंगल से कहा कि जो भी भक्त गोवर्धन परिक्रमा करेगा, उसकी हाजिरी तुम लेना और मुझे उसकी सूचना देना।

Govardhan Parikrama marg मधुमंगल ने भगवान से कहा कि वे तभी इस जिम्मेदारी को निभाएंगे जब भगवान स्वयं उन्हें दर्शन देंगे। भगवान कृष्ण ने यह वचन स्वीकार किया। तभी से माना जाता है कि पूंछरी का लौठा आज भी भगवान कृष्ण की प्रतीक्षा में हैं और हर भक्त की हाजिरी लेते हैं।

सतयुग से जुड़ा रहस्य

Govardhan Parikrama marg मान्यता है कि पूंछरी का लौठा केवल द्वापर युग तक सीमित नहीं हैं। सतयुग में यही स्वरूप भगवान शंकर के रूप में, त्रेतायुग में हनुमान के रूप में और द्वापर में मधुमंगल के रूप में प्रकट हुआ। यही कारण है कि यह स्थान केवल धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है।

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पूंछरी का लौठा नाम कैसे पड़ा

Govardhan Parikrama marg इस नाम के पीछे भी एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। जब भगवान कृष्ण बैकुंठ चले गए तो गोपियां उन्हें ढूंढती हुई इधर उधर भटकने लगीं। किसी ने कहा कि मधुमंगल से पूछो, किसी ने कहा किसी और से पूछो। एक सखी दूसरी से कहती रही तू पूछ री, तू पूछ री। इसी बोलचाल से यह स्थान पूंछरी कहलाने लगा। बाद में यह जगह पूंछरी का लौठा के नाम से प्रसिद्ध हो गई।

आज भी जीवित है यह परंपरा

आज भी जो श्रद्धालु गोवर्धन परिक्रमा करते हैं, वे पूंछरी का लौठा पर जरूर रुकते हैं। लोग यहां सिर झुकाते हैं, मन ही मन हाजिरी लगाते हैं और अपनी मनोकामनाएं भगवान के चरणों में रखते हैं। कई लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है।

श्रद्धा और विश्वास का अद्भुत संगम

पूंछरी का लौठा कोई भव्य मंदिर नहीं है, न ही यहां चमक-दमक है। फिर भी यहां जो शांति और अपनापन महसूस होता है, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि गोवर्धन आने वाला हर श्रद्धालु इस स्थान को विशेष मानता है।

गोवर्धन यात्रा में पूंछरी का लौठा क्यों जरूरी है

गोवर्धन परिक्रमा केवल पैरों से चलने की यात्रा नहीं है, बल्कि यह मन और आत्मा की यात्रा है। पूंछरी का लौठा इस यात्रा का वह पड़ाव है, जहां आकर इंसान अपने अहंकार को छोड़ देता है और सच्चे मन से भगवान को याद करता है। यही कारण है कि बिना यहां आए गोवर्धन परिक्रमा अधूरी मानी जाती है।

अगर आप कभी गोवर्धन परिक्रमा पर जाएं, तो पूंछरी का लौठा जरूर जाएं। वहां कुछ पल ठहरकर आंखें बंद करें और उस ऊर्जा को महसूस करें, जो सदियों से भक्तों को अपनी ओर खींचती आ रही है।

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