गौतम गंभीर ने भारतीय क्रिकेट टीम को एक और आईसीसी ट्रॉफी दिलाकर अपनी आलोचनाओं का जवाब दे दिया है, लेकिन उनकी कोचिंग यात्रा अभी भी अधूरी redemption की कहानी है। 2007 टी20 वर्ल्ड कप और 2011 वनडे वर्ल्ड कप में अहम भूमिका निभाने के बाद, गंभीर ने कोच के रूप में चैंपियंस ट्रॉफी जीतकर एक और उपलब्धि अपने नाम की। हालांकि, यह सफर आसान नहीं था। टूर्नामेंट से पहले उनकी रणनीतियों और टीम चयन पर सवाल उठे, यहां तक कि रोहित शर्मा के साथ मतभेद की खबरें भी सुर्खियों में रहीं। लेकिन गंभीर ने आलोचनाओं की परवाह किए बिना सिर्फ जीत पर फोकस रखा।
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चुनौतियों से घिरी कोचिंग यात्रा
गंभीर को जब भारतीय टीम का मुख्य कोच बनाया गया, तब टीम टी20 वर्ल्ड कप जीतकर जबरदस्त फॉर्म में थी। लेकिन उनकी शुरुआत खराब रही—पहले श्रीलंका के खिलाफ 0-2 की वनडे सीरीज हार, फिर न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू मैदान पर 0-3 की ऐतिहासिक शिकस्त। इससे उनकी कोचिंग की रणनीतियों पर सवाल उठे। टेस्ट क्रिकेट में भी उनकी परेशानियां बढ़ीं, जब भारत ने 10 साल बाद बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी गंवाई।
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चैंपियंस ट्रॉफी से पहले चयन को लेकर भी विवाद हुआ। गंभीर की सिफारिश पर यशस्वी जायसवाल और मोहम्मद सिराज की जगह केकेआर के वरुण चक्रवर्ती और हर्षित राणा को टीम में जगह मिली। इसे पक्षपात करार दिया गया, लेकिन ट्रॉफी जीतने के बाद यही फैसले मास्टरस्ट्रोक साबित हुए।
साहसी फैसले बने जीत की कुंजी
गंभीर ने इंग्लैंड के खिलाफ वनडे सीरीज में कुछ चौंकाने वाले फैसले लिए—हर्षित राणा को अर्शदीप सिंह पर तरजीह देना, केएल राहुल को नंबर 6 पर भेजना और अक्षर पटेल को प्रमोट करके नंबर 5 पर खिलाना। इन फैसलों ने चैंपियंस ट्रॉफी में भी टीम को मजबूती दी। भारत ने टूर्नामेंट की शुरुआत बांग्लादेश और पाकिस्तान को हराकर की, लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ चार स्पिनर्स खिलाने का जोखिम उठाया। चक्रवर्ती ने अपने जादुई स्पिन से मैच पलट दिया, और इसी रणनीति ने भारत को नॉकआउट तक पहुंचा दिया।
टेस्ट क्रिकेट में असली परीक्षा बाकी
चैंपियंस ट्रॉफी जीतकर गंभीर ने अपनी आलोचनाओं को दबा दिया है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनकी सबसे बड़ी चुनौती अभी बाकी है। बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में उनकी रणनीतियां विफल रहीं, और अब इंग्लैंड के खिलाफ पांच टेस्ट की सीरीज में उन्हें खुद को साबित करना होगा। यह सिर्फ गंभीर ही नहीं, बल्कि रोहित शर्मा और विराट कोहली जैसे दिग्गजों के लिए भी अहम साबित हो सकता है। अगर भारत इस सीरीज में फेल होता है, तो बीसीसीआई पहली बार स्प्लिट कोचिंग मॉडल अपनाने पर विचार कर सकता है।
गंभीर की कोचिंग यात्रा ने अभी सिर्फ एक मोड़ लिया है—क्या वह इसे सफल अंजाम तक पहुंचा पाएंगे?
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