“इंडस संधि ठप! अब पानी पर भारत का पलटवार”

By Shiv

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सिंधु संधि निलंबन: अब जल पर भी सख्ती का दौर

जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटन स्थल पहलगाम में 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या के बाद भारत ने एक बड़ा कूटनीतिक कदम उठाया है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में सिंधु जल संधि को निलंबित करने का निर्णय लिया गया। यह निर्णय केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव बनाने की दिशा में एक बड़ी शुरुआत मानी जा रही है।

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सिंधु प्रणाली क्या है?

सिंधु नदी प्रणाली में मुख्य नदी सिंधु के साथ पाँच बाएँ तट की सहायक नदियाँ शामिल हैं – रावी, ब्यास, सतलुज, झेलम और चिनाब। इनमें से रावी, ब्यास और सतलुज को “पूर्वी नदियाँ” और झेलम, चिनाब तथा सिंधु को “पश्चिमी नदियाँ” कहा जाता है।

यह प्रणाली भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए जल जीवन रेखा की तरह है। पूर्वी नदियों का उपयोग भारत करता है, जबकि पश्चिमी नदियों का अधिकांश जल पाकिस्तान को मिलता है – यही आधार है 1960 की सिंधु जल संधि का।

निलंबन का कारण और असर

भारत का यह निर्णय सीधे तौर पर पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ा है। सरकार ने इस संधि को फिलहाल स्थगित कर दिया है और कूटनीतिक संकेत साफ है – “आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकतीं।”

पूर्व सिंधु जल आयुक्त प्रदीप कुमार सक्सेना के अनुसार, भारत इस संधि को पूर्ण रूप से समाप्त करने की ओर भी कदम बढ़ा सकता है।

“वियना संधि कानून के अनुच्छेद 62 के तहत यदि कोई मूल परिस्थिति बदल जाए, तो किसी संधि को समाप्त किया जा सकता है,” – सक्सेना

भारत के पास क्या-क्या विकल्प हैं?

  1. जल डेटा साझा न करना:
    अब भारत पाकिस्तान के साथ बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली का डेटा साझा करने का बाध्य नहीं रहेगा, जो मानसून में पाकिस्तान के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
  2. रिजर्वायर फ्लशिंग का प्रतिबंध खत्म:
    अब भारत पश्चिमी नदियों के डैम में जमा सिल्ट को कभी भी साफ कर सकता है, जिससे पाकिस्तान की सिंचाई प्रणाली प्रभावित हो सकती है।
  3. पाकिस्तान के दौरे रद्द:
    संधि के तहत पाक अधिकारियों को भारतीय जल परियोजनाओं का दौरा करना होता है। अब ये दौरे रद्द किए जा सकते हैं।
  4. डैम निर्माण में छूट:
    भारत अब झेलम, चिनाब आदि पर नए डैम और जल विद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियों की अनदेखी कर सकता है

अतीत की जल परियोजनाएँ जिन पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई:

  • सलाल, बगलीहार, उरी, किशनगंगा, रतले, निमू-बाजगो, आदि
  • 2019 पुलवामा हमले के बाद भारत ने लद्दाख में 8 नई परियोजनाओं को मंजूरी दी थी।

भारत की भौगोलिक स्थिति – ‘ऊपरी रिपेरियन’ की ताकत

आजादी के समय पंजाब की जल आपूर्ति पर भारत की स्थिति ‘ऊपरी रिपेरियन’ (Upper Riparian) की थी यानी ऊँचाई से बहने वाले जल पर नियंत्रण। यही स्थिति पाकिस्तान की निर्भरता बनती है।

नए दौर की जल कूटनीति की शुरुआत

संधि के निलंबन से पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सिंचाई प्रणाली, गेहूं और चावल की खेती पर सीधा असर पड़ सकता है। भारत अब अपने संप्रभु अधिकारों का प्रयोग करते हुए जल नीति को आतंकवाद के खिलाफ रणनीतिक हथियार के रूप में उपयोग कर सकता है।


‘जल’ ही अब ‘जलजला’ बनेगा?

सिंधु जल संधि न केवल दो देशों के बीच पानी का बंटवारा तय करती थी, बल्कि यह विश्वास की एक डोर भी थी। अब जब यह डोर टूटने की कगार पर है, तब पाकिस्तान को यह समझना होगा कि “आतंक के साथ सह-अस्तित्व संभव नहीं।”

भारत ने साफ कर दिया है – अब हर बूँद का हिसाब होगा।

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